Friday, May 29, 2009

Shri Gopal singh Nepali

अपनेपन का मतवाला था भीड़ों में भी मैं,खो न सका
चाहे जिस दल में मिल जाऊँ इतना सस्ता, मैं हो न सका

देखा जग ने टोपी बदली,तो मन बदला, महिमा बदली
पर ध्वजा बदलने से न यहाँ, मन-मंदिर की प्रतिमा बदली

मेरे नयनों का श्याम रंग जीवन भर कोई, धो न सका
चाहे जिस दल में मिल जाऊँ इतना सस्ता, मैं हो न सका

जो चाहा करता चला सदा प्रस्तावों को मैं ,ढो न सका
चाहे जिस दल में मैं जाऊँ इतना सस्ता, मैं हो न सका

दीवारों के प्रस्तावक थे
पर दीवारों से घिरते थे
व्यापारी की ज़ंजीरों से
आज़ाद बने वे फिरते थे

ऐसों से घिरा जनम भर मैं सुखशय्या पर भी, सो न सका
चाहे जिस दल में मिल जाऊँ इतना सस्ता, मैं हो न सका

Monday, May 25, 2009

solah karan pooja se

कंचन-झारी निर्मल-नीर, पूजन जिनवर गुण-गंभीर।  
महा गुरु हो जय जय नाथ परम गुरु हो।  
दरश-विशुद्धि भावना भाय सोलह तीर्थंकर-पद-पाय 
महा गुरु हो जय जय नाथ परम गुरु हो।

Wednesday, May 20, 2009

कौशल त्रिपाठी : जो कि मेरे मित्र हैं :-)

रुद्र का आह्वान करता लेखनी में ज्वाल दो ,
भस्म कर दो सब मलिनता वर हमें महाकाल दो ।  
हर प्रताडित के हृदय की हाय अब गर्जन बने , 
आंख से बहते हुये अश्रु लावा बन बहे ।
भीम की ललकार हो हर दबी शोषित जुबान , 
द्वेष की लंका जलाने अंजनी का लाल दो ।।  
ओ दया के सिन्धु सुन लो हमारी ये पुकार ,  
इस विपद वेला मे जन करते गुहार । 
अज्ञानता के तिमिर का नाश करने के लिये ,
तप , ज्ञान , बुद्धि विवेक की तुम ज्वलित एक मशाल दो ।।  
हैं मनुज हम जिनने मापी सिन्धु की गहराईयां , 
छू चुके हम अपने बूते ब्रहाण्ड की ऊंचाईयां ।  
एक हार से टूटे नही , आगे बढे चलते रहें , 
पराजय यज्ञ के विध्वंस को तुम वीरभद्र विकराल दो ।। 
ध्येय पथ पर हमारे शूल है बिखरे पडे , 
प्रबल सरिता , दुरुह गिरि मार्ग को अवरुद्ध करे । 
अटल विस्वास के स्वर में विजय के गीत हम गाते रहें ,  
संकटो के उर मे धसाने राणा प्रताप का भाल दो ।।

Tuesday, May 19, 2009

maithilisharan gupt: matribhoomi

नीलाम्बर परिधान हरित पट पर सुन्दर है 
सूर्य चन्द्र युग मुकुट मेखलाकार रत्नाकर है  
नदियाँ प्रेम प्रवाह , फूल तारे मंडन हैं 
बंदी जन खग वृन्द , शेषफन सिंहासन है  

करते अभिषेक पयोद हैं , बलिहारी इस देश की  
हे मातृभूमि तू सत्य ही , सगुण मूर्ति सर्वेश की  
क्षमामयी, तू दयामयी है, क्षेममयी है  
सुधामयी , वात्सल्यमयी , तू प्रेममयी है 
विभवशालिनी ,विश्वपालिनी , दुख्हर्त्री है  
भय निवारिणी , शांतिकारनी, सुखकर्त्री है

Saturday, May 2, 2009

siddh pooja se

किया तुमने जीवन का शिल्प , गिरे सब मोह कर्म और घात 
तुम्हारा पौरुष झंझावात , झाड़ गए पीले पीले पात 
नहीं प्रज्ञा आवर्तन शेष , हुए सब आवागमन अशेष
अरे प्रभु चिर समाधी में लीन, एक में बसते आप अनेक  
तुम्हारा चित प्रकाश कैवल्य , कहे तुम ज्ञायक लोकालोक  
अहो बस ज्ञान जहाँ हो लीन , वहीं हैं ज्ञेय वहीं है भोग  
योग चान्चाल हुआ अवलोक, सकल चैतन्य निकल निष्काम  
अरे ओ योग रहित योगीश ,रहो यों काल अनंतानंत  
जीव कारण परमात्म प्रकार, वही है अन्तास्तत्व अखंड  
तुम्हे प्रभु रहा वही अवलम्ब , कार्य परमात्म हुए निर्वंद