Saturday, May 2, 2009

siddh pooja se

किया तुमने जीवन का शिल्प , गिरे सब मोह कर्म और घात 
तुम्हारा पौरुष झंझावात , झाड़ गए पीले पीले पात 
नहीं प्रज्ञा आवर्तन शेष , हुए सब आवागमन अशेष
अरे प्रभु चिर समाधी में लीन, एक में बसते आप अनेक  
तुम्हारा चित प्रकाश कैवल्य , कहे तुम ज्ञायक लोकालोक  
अहो बस ज्ञान जहाँ हो लीन , वहीं हैं ज्ञेय वहीं है भोग  
योग चान्चाल हुआ अवलोक, सकल चैतन्य निकल निष्काम  
अरे ओ योग रहित योगीश ,रहो यों काल अनंतानंत  
जीव कारण परमात्म प्रकार, वही है अन्तास्तत्व अखंड  
तुम्हे प्रभु रहा वही अवलम्ब , कार्य परमात्म हुए निर्वंद

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