तुम्हारा पौरुष झंझावात , झाड़ गए पीले पीले पात
नहीं प्रज्ञा आवर्तन शेष , हुए सब आवागमन अशेष
अरे प्रभु चिर समाधी में लीन, एक में बसते आप अनेक
तुम्हारा चित प्रकाश कैवल्य , कहे तुम ज्ञायक लोकालोक
अहो बस ज्ञान जहाँ हो लीन , वहीं हैं ज्ञेय वहीं है भोग
योग चान्चाल हुआ अवलोक, सकल चैतन्य निकल निष्काम
अरे ओ योग रहित योगीश ,रहो यों काल अनंतानंत
जीव कारण परमात्म प्रकार, वही है अन्तास्तत्व अखंड
तुम्हे प्रभु रहा वही अवलम्ब , कार्य परमात्म हुए निर्वंद
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