Wednesday, May 20, 2009

कौशल त्रिपाठी : जो कि मेरे मित्र हैं :-)

रुद्र का आह्वान करता लेखनी में ज्वाल दो ,
भस्म कर दो सब मलिनता वर हमें महाकाल दो ।  
हर प्रताडित के हृदय की हाय अब गर्जन बने , 
आंख से बहते हुये अश्रु लावा बन बहे ।
भीम की ललकार हो हर दबी शोषित जुबान , 
द्वेष की लंका जलाने अंजनी का लाल दो ।।  
ओ दया के सिन्धु सुन लो हमारी ये पुकार ,  
इस विपद वेला मे जन करते गुहार । 
अज्ञानता के तिमिर का नाश करने के लिये ,
तप , ज्ञान , बुद्धि विवेक की तुम ज्वलित एक मशाल दो ।।  
हैं मनुज हम जिनने मापी सिन्धु की गहराईयां , 
छू चुके हम अपने बूते ब्रहाण्ड की ऊंचाईयां ।  
एक हार से टूटे नही , आगे बढे चलते रहें , 
पराजय यज्ञ के विध्वंस को तुम वीरभद्र विकराल दो ।। 
ध्येय पथ पर हमारे शूल है बिखरे पडे , 
प्रबल सरिता , दुरुह गिरि मार्ग को अवरुद्ध करे । 
अटल विस्वास के स्वर में विजय के गीत हम गाते रहें ,  
संकटो के उर मे धसाने राणा प्रताप का भाल दो ।।

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