Friday, May 29, 2009

Shri Gopal singh Nepali

अपनेपन का मतवाला था भीड़ों में भी मैं,खो न सका
चाहे जिस दल में मिल जाऊँ इतना सस्ता, मैं हो न सका

देखा जग ने टोपी बदली,तो मन बदला, महिमा बदली
पर ध्वजा बदलने से न यहाँ, मन-मंदिर की प्रतिमा बदली

मेरे नयनों का श्याम रंग जीवन भर कोई, धो न सका
चाहे जिस दल में मिल जाऊँ इतना सस्ता, मैं हो न सका

जो चाहा करता चला सदा प्रस्तावों को मैं ,ढो न सका
चाहे जिस दल में मैं जाऊँ इतना सस्ता, मैं हो न सका

दीवारों के प्रस्तावक थे
पर दीवारों से घिरते थे
व्यापारी की ज़ंजीरों से
आज़ाद बने वे फिरते थे

ऐसों से घिरा जनम भर मैं सुखशय्या पर भी, सो न सका
चाहे जिस दल में मिल जाऊँ इतना सस्ता, मैं हो न सका

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