तेरा प्रासाद महकता प्रभु अति दिव्य दशांगी धूपों से
अतएव निकट नहीं आ पाते कर्मो के कीट पतंग अरे
यह धूप सुरभि निर्झरनी मेरा पर्यावरण विशुद्ध हुआ
छट गया योग निद्रा में प्रभु सर्वांग अमीय है बरस रहा
Sunday, April 5, 2009
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