Sunday, April 12, 2009

अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध

आँख का आँसू ढलकता देखकर
जी तड़प कर के हमारा रह गया
क्या गया मोती किसी का है बिखर
या हुआ पैदा रतन कोई नया ?

1 comment:

डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह said...

sundar sankalan hindi ke mahan rachnakaron kaa.my heartiest best wishes for your efforts.yours
dr.bhoopendra