शांत स्निग्ध ज्योत्स्ना उज्जवल
अपलक अनंत नीरव भूतल
सैकत शैय्या पर दुग्ध धवल
तन्वंगी गंगा ग्रीष्म विरल
लेती है श्रांत क्लांत निश्छल
तापस बाला गंगा निर्मल
शशि मुख से दीपित मृदु करतल
लहरे उर पर कोमल कन्तुल
साडी की सिकुडन सी जिस पर
शशि की रेशमा विभा से भर
सिमटी है वर्तुल मृदुल लहर
Sunday, April 12, 2009
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1 comment:
thanx 4 reminding my school days- this poem was part of our 'hindi pathya pustika'.
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