बन कुण्डलपुर का राजकुंवर , सिद्धार्थ के घर तू आया रे
धनपति ने पंद्रह माह वहाँ , रत्नों का कोष लुटाया रे
क्या कोई रत्नों को मांगे ,रत्नत्रय ज्योत के आगे
सारे रत्न लजा रहे , महावीरा हम तेरी आरती गा रहे
[रत्नत्रय = सम्यक दर्शन , सम्यक ज्ञान , सम्यक चारित्र ]
Friday, April 3, 2009
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