Friday, April 17, 2009

सुरपति ले अपने शीश , जगत के ईश :: जन्माभिषेक आरती

सुरपति ले अपने शीश , जगत के ईश |
गए गिरिराजा, जा पांडुक शिला विराजा ||

शिल्पी कुबेर वहाँ आकर के , क्षीरोदधि का जल लाकर के |
रचिपेडी ले आए सागर का जल ताजा , तब नहुन कियो जिनराजा || सुरपति ..... ||

नीलम पन्ना वैडुरय मणि , कलशा ले करके देवगणी |
एक सहस आठ कलशा ले करके नभराजा , फ़िर नहुन कियो जिनराजा || सुरपति ..... ||

दसु योजन गहराई वाले , चहुँ योजन चौडाई वाले |
एक योजन मुख के कलश धुरे जिन माथा , नही जरा डिगे शिशु नाथा || सुरपति ..... ||

सौधर्म इन्द्र अरु इशाना , प्रभु कलश करे धर युगपाना
अरु सनंत कुमार, महेंद्र दोए सुरराजा सिर चंवर धुरावे साजा || सुरपति ..... ||

फ़िर शेष दिविज जयकार किया , इन्द्राणी प्रभु तन पोंछ लिया
शुभ तिलक दृगंजन शचि कियो शिशुराजा, नानाभुषण से साजा || सुरपति ..... ||

ऐरावत पुनि प्रभु लाकर के , माता की गोद बिठा करके
अति अचरज तांडव नृत्य कियो दिविराजा , स्तुति करके जिनराजा|| सुरपति ..... ||

चाहत मन मुन्ना लाल शरण , वसु करम जाल दुःख दूर करन
शुभ आशीषमय वरदान देहु जिनराजा , मम नहुन होए गिरिराजा || सुरपति ..... ||
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गिरिराजा == सुमेरु पर्वत , सुरराजा == दिविराजा == इन्द्र , रचि/शचि == इन्द्र की पत्नी [not sure ]
क्षीरोदधि == वो समुद्र जहा पानी नहीं क्षीर होता है , पुनि == पीठ

1 comment:

Unknown said...

superb. Keep on going. A P Jain 7408408851