उषा महावर तुझे लगाती , संध्या शोभा वारे
रानी रजनी पल-पल , दीपक से आरती उतारे
भवन भवन तेरा मंदिर है , स्वर है श्रम की वाणी
राज रही कालरात्रि को उज्जवल कर कल्याणी
तू ही जगत की जय है,तू है बुद्धिमयी वरदात्री
तू धात्री , तू भू-नभ गात्री, सूझ बूझ निर्मात्री
Friday, April 24, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment