Aasha Sarg se
देव न थे हम और न ये हैं, सब परिवर्तन के पुतले,
हाँ कि गर्व-रथ में तुरंग-सा, जितना जो चाहे जुत ले।"
जीवन-जीवन की पुकार है खेल रहा है शीतल-दाह-
किसके चरणों में नत होता नव-प्रभात का शुभ उत्साह।
मैं हूँ, यह वरदान सदृश क्यों ,लगा गूँजने कानों में!
मैं भी कहने लगा, 'मैं रहूँ', शाश्वत नभ के गानों में।
उस असीम नीले अंचल में, देख किसी की मृदु मुसक्यान,
मानों हँसी हिमालय की है, फूट चली करती कल गान।
Thursday, March 19, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
hii this tanya xii this is great blog well done actually this has helped me in my assingment thanks amit
tanya ji .. you are most welcome.. I am happy that my blog is useful to you...
btw what assignment you were doing.. I have got full kamayani book along with its "Bhasha" [explaination in easy hindi :-) ]
Post a Comment