Sunday, March 22, 2009

पर्वत प्रदेश में पावस , सुमित्रानंदन पंत

मेखलाकार पर्वत अपार
अपने सहस्त्र दृग सुमन फाड़,
अवलोक रहा है बार-बार
नीचे जल में निज महाकार

धँस गए धरा में सभय शाल!
उठ रहा धुआँ, जल गया ताल!
यों जलद यान में विचर, विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल!

इस तरह मेरे चितेरे हृदय की
बाह्य प्रकृति बनी चमत्कृत चित्र थी,
सरल शैशव की सुखद सुधि-सी वही
बालिका मेरी मनोरम मित्र थी!

No comments: