Monday, January 11, 2010

कौशल त्रिपाठी जो कि मेरे मित्र हैं

मै चिरंतन इस जगत में
पर आज भी अकृलान्त हूं ,
कोटि कोटि कल्पों से करता
स्वयं का अनुसंधान हूं ।

निकृष्टता का वरण मैने किया है ,
श्रेष्ठता का चरम मैने छुआ है ।
तिमिर के तानूर से तारने को
तिमिरारि सा दीप्यमान हूं ॥

मै समय की रेत पर लिखा हुआ एक नाम हूं ....

1 comment:

Unknown said...

अकृलान्त का तात्पर्य क्या होता है ? :)