पर आज भी अकृलान्त हूं ,
कोटि कोटि कल्पों से करता
स्वयं का अनुसंधान हूं ।
निकृष्टता का वरण मैने किया है ,
श्रेष्ठता का चरम मैने छुआ है ।
तिमिर के तानूर से तारने को
तिमिरारि सा दीप्यमान हूं ॥
श्रेष्ठता का चरम मैने छुआ है ।
तिमिर के तानूर से तारने को
तिमिरारि सा दीप्यमान हूं ॥
मै समय की रेत पर लिखा हुआ एक नाम हूं ....
1 comment:
अकृलान्त का तात्पर्य क्या होता है ? :)
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