Thursday, April 16, 2009

कृष्ण की चेतावनी :: रामधारी सिंह दिनकर जी

हरि ने भीषण हुंकार किया,
अपना स्वरूप-विस्तार किया,
डगमग-डगमग दिग्गज डोले,
भगवान् कुपित होकर बोले-
‘जंजीर बढ़ा कर साध मुझे,
हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे।

यह देख, गगन मुझमें लय है,
यह देख, पवन मुझमें लय है,
मुझमें विलीन झंकार सकल,
मुझमें लय है संसार सकल।
अमरत्व फूलता है मुझमें,
संहार झूलता है मुझमें।

‘शत कोटि विष्णु, ब्रह्मा, महेश,
शत कोटि विष्णु जलपति, धनेश,
शत कोटि रुद्र, शत कोटि काल,
शत कोटि दण्डधर लोकपाल।
जञ्जीर बढ़ाकर साध इन्हें,
हाँ-हाँ दुर्योधन! बाँध इन्हें।

2 comments:

alka mishra said...

प्रिय बन्धु
बहुत अच्छा लगा आपका लेखन
आज कल तो लिखने पढने वालो की कमी हो गयी है ,ऐसे समय में ब्लॉग पर लोगों को लिखता-पढता देख बडा सुकून मिलता है लेकिन एक कष्ट है कि ब्लॉगर भी लिखने पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं जबकि पढने पर कम .--------
नई कला, नूतन रचनाएँ ,नई सूझ ,नूतन साधन
नये भाव ,नूतन उमंग से , वीर बने रहते नूतन
शुभकामनाये
जय हिंद

Amit Singhai said...

धन्यवाद अलका जी
मुझे भी यही आभास हुआ कि लोगो को अच्छा साहित्य पड़ना चाहिए
मैंने प्रारंभ तो किया था कि , जो मेने पड़ा उसको कही संजो के रख सकू..
डायरी से शुरू किया पर वो भी हमेशा साथ नहीं रहती थी, इसलिए इन्टरनेट सबसे अच्छा साधन लगा
आपकी अंतिम पंकितयां बहुत ही सुंदर हैं

नई कला, नूतन रचनाएँ ,नई सूझ ,नूतन साधन
नये भाव ,नूतन उमंग से , वीर बने रहते नूतन

क्या में इनको अपने ब्लॉग में आपके नाम पे लिख सकता हूँ