हम भिखमंगों की दुनिया में ,
स्वछन्द लुटाकर प्यार चले |
हम एक निशानी उर पर ,
ले असफलता का भार चले|
हम मान रहित, अपमान रहित,
जी भर कर खुलकर खेल चुके |
हम हँसते हँसते आज यहाँ ,
प्राणों की बाजी हार चले |
अब अपना और पराया क्या,
आबाद रहें रुकने वाले
हम स्वयं बंधे थे, और स्वयं,
हम अपने बन्धन तोड़ चले
Thursday, April 16, 2009
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