Monday, April 13, 2009

कुछ और भी दूं

मन समर्पित तन समर्पित और यह जीवन समर्पित ,
चाहता हूं मातॄ - भू तुझको अभी कुछ और भी दूं ||

मां तुम्हारा ऋण बहुत है , मै अकिंचन ,
किन्तु इतना कर रहा फ़िर भी निवेदन |
थाल मे सजा कर लाऊं भाल जब ,
स्वीकार कर लेना दयाकर यह समर्पण |

गान अर्पित , प्राण अर्पित रक्त का कण कण समर्पित ,
मन समर्पित , तन समर्पित और यह जीवन समर्पित ||

2 comments:

Amit Singhai said...

धन्यवाद मयूर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए बहुत ही उत्साहवर्धक है

Amit Singhai said...

वैसे मयूर जी ये पंक्तियाँ मेरी नहीं हैं