this poem was in our course
घोर अंधकार हो¸चल रही बयार हो¸
आज द्वार–द्वार पर यह दिया बुझे नहीं
यह निशीथ का दिया ला रहा विहान है।
शक्ति का दिया हुआ¸शक्ति को दिया हुआ¸
भक्ति से दिया हुआ¸यह स्वतंत्रता–दिया¸
रूक रही न नाव होजोर का बहाव हो¸
आज गंग–धार पर यह दिया बुझे नहीं¸
यह स्वदेश का दिया प्राण के समान है।
यह अतीत कल्पना¸यह विनीत प्रार्थना¸
यह पुनीत भावना¸यह अनंत साधना¸
शांति हो¸ अशांति हो¸युद्ध¸ संधि¸ क्रांति हो¸
तीर पर¸ कछार पर¸ यह दिया बुझे नहीं¸
देश पर¸ समाज पर¸ ज्योति का वितान है।
तीन–चार फूल है¸आस–पास धूल है¸
बांस है –बबूल है¸घास के दुकूल है¸
वायु भी हिलोर दे¸फूंक दे¸ चकोर दे¸
कब्र पर मजार पर¸ यह दिया बुझे नहीं¸
यह किसी शहीद का पुण्य–प्राण दान है।
झूम–झूम बदलियाँचूम–चूम बिजलियाँ
आंधिया उठा रहींहलचलें मचा रहीं
लड़ रहा स्वदेश हो¸यातना विशेष हो¸
क्षुद्र जीत–हार पर¸ यह दिया बुझे नहीं¸
यह स्वतंत्र भावना का स्वतंत्र गान है।
Monday, March 23, 2009
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