Saturday, August 4, 2012

अटल जी

ठन गई!  
मौत से ठन गई!

जूझने का मेरा इरादा न था,मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?

तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ,सामने वार कर फिर मुझे आज़मा।

मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र,शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।

बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।

प्यार इतना परायों से मुझको मिला,न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला।

हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।

आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है।

पार पाने का क़ायम मगर हौसला,देख तेवर तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई।
मौत से ठन गई।

व्योम मंडल में, जगतीतल में -
सोती शान्त सरोवर पर उस अमल कमलिनी-दल में -
सौंदर्य-गर्विता-सरिता के अति विस्तृत वक्षस्थल में -
धीर-वीर गम्भीर शिखर पर हिमगिरि-अटल-अचल में -
उत्ताल तरंगाघात-प्रलय घनगर्जन-जलधि-प्रबल में -
क्षिति में जल में नभ में अनिल-अनल में -
सिर्फ़ एक अव्यक्त शब्द-सा 'चुप चुप चुप'
है गूँज रहा सब कहीं -

ज्ञान और विज्ञान .......

ज्ञान और विज्ञान मिलकर,  रास्ते बन जायेंगे
आने वाली पीढ़ियों को मंजिलो तक लायेंगे
नाज़ होगा सारी दुनिया को हमारी खोज पर
और हम अगली सदी के रहनुमा कहलायेंगे